डिजिटल युग में मोबाइल टेक्नालोजी जीवन का अहम हिस्सा बन गई है। युवाओं में मोबाइल के प्रति प्रेम तेजी से बढ़ रहा है। मोबाइल की लत के कारण युवा अवसाद के शिकार हो रहे हैं।
उत्तर प्रदेश के मेरठ में मेडिकल और जिला अस्पताल के मनोरोग विभाग में आए 26553 मरीजों पर अवलोकन हुआ जिससे यह पता चला कि मोबाइल के अधिक उपयोग से युवाओं के मस्तिष्क और मन पर विपरीत असर पड़ रहा है। दैनिक दिनचर्या में परिवर्तन आने से युवाओं को मेन्टल इलनेस अकेलापन, चिड़चिड़ापन, अवसाद आदि कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। मोबाइल की लत के कारण रात भर या देर रात तक जागना युवाओं को बीमार कर रहा है। काल्पनिक दुनिया में जीने वाले युवक अवसाद का शिकार हो रहे हैं।
26553 मरीजों पर हुआ अवलोकन
जिला अस्पताल और मेडिकल कॉलेज में इस साल एक जनवरी से 30 जून तक 26553 मरीज आए, जिनमें से करीब 50 प्रतिशत मरीज 25 से 45 साल के रहे। चिड़चिड़ापन, अवसाद और तनाव में रहना आदि परेशानियां लेकर आए लोगों का अवलोकन करने पर पता चला कि इनकी दिनचर्या खराब है। ज्यादा समय मोबाइल पर बीतता है, जो उन्हें बीमार कर रहा है। मनोरोग विशेषज्ञ भागदौड़ भरी जिंदगी और मोबाइल में खोकर अकेलापन में रहने को इसकी बड़ी वजह मान रहे हैं।
केस स्टडी-1
जागृति विहार निवासी मनोज (23) अच्छी नौकरी की तलाश में है। दिनभर मन बुझा-बुझा रहता था, परिजनों ने इसकी वजह पूछी मगर उसने कुछ नहीं बताया। मेडिकल कॉलेज पहुंचे तो काउंसिलिंग में पता चला कि वह मोबाइल पर लगा रहता है या फिर सोता रहता है। यह उसकी आदत बन गई है। काउंसिलिंग के बाद अब वह पहले से बेहतर महसूस कर रहा है।
केस स्टडी-2
घंटाघर निवासी जाहिद (22) मेडिकल स्टोर पर काम करता है। जब वह घर पर रहता है तो मोबाइल पर ज्यादा वक्त गुजराता है। छोटी-छोटी बातों पर परिजनों से झगड़ता है। इसका जिला अस्पताल के मनोरोग विभाग में इलाज चल रहा है। काउंसिलिंग और दवाओं के बाद अब वह ठीक है। परिजनों को भी उसका सहयोग करने की सलाह दी गई है।
रात में जागते हैं, दिन में आती है नींद
ज्यादातर युवा मोबाइल और सोशल साइट्स की वजह से सोने के बजाय रात को देर तक जागते हैं। गेम्स खेलते हैं, फिल्म देखते रहते हैं। उन्होंने अपना लाइफ स्टाइल इस तरह का बना लिया है कि अब उन्हें दिन में सोते हैं और रात में जागते हैं। परेशानी अपनों से शेयर करने के बजाय खुद में ही घुटते रहते हैं। नतीजतन, ऐसे में वे अवसाद का शिकार हो रहे हैं। – डॉ. कमलेंद्र किशोर, मनोरोग विशेषज्ञ, जिला अस्पताल
आत्महत्या की सोच होनी लगी प्रभावी
मोबाइल के कारण परिजनों से संवाद न होना भी अवसाद की ओर ले जा रहा है। गलत संगत, नशीले पदार्थों का सेवन भी बड़ा कारण है। ऐसे मरीजों को काउंसिलिंग के साथ-साथ दवा भी दी जाती है। ऐसे कई केस हमारे पास आए हैं, जिनमें अवसाद इतना बढ़ चुका था कि उनमें आत्महत्या की सोच प्रभावी होनी लगी थी। ऐसे लोगों को काउंसिलिंग की गई। – डॉ. तरुण पाल, मनोरोग विशेषज्ञ, मेडिकल कॉलेज
यह हैं डिप्रेशन के लक्षण
गहरी नींद में होने के बावजूद अचानक जाग जाना।
किसी भी काम में मन न लगना।
नींद न आना, किसी भी काम में खुशी न मिलना।
हर वक्त नकारात्मक विचार आना।
हर समय उदास रहना।
सबके साथ होते हुए भी अकेला महसूस करना।
डिप्रेशन से बचने के सुझाव
अपने से इतनी उम्मीदें भी न पाल लें जो संभव न हो सकें।
समय से पौष्टिक भोजन और पूरी नींद लें।
हो सके तो जल्दी सोने और जल्दी उठने की आदत डालें।
जरूरी न हो तो मोबाइल के ज्यादा इस्तेमाल से बचें।
नकारात्मक लोगों से दूर रहें और खुश रहने की कोशिश करें।
तनाव हो तो परिवार और दोस्तों से शेयर करें।