भारत में 40 लाख से अधिक लोगों को किसी न किसी प्रकार का डिमेंशिया है। विश्व भर में कम-से-कम 4 करोड़ 40 लाख लोग डिमेंशिया से ग्रस्त हैं, जो इस रोग को एक वैश्विक स्वास्थ्य संकट बनाते हैं जिसे संबोधित किया जाना ज़रूरी है।
पिछले तीन साल से जारी कोरोना महामारी से बचाव के लिए हम सभी ने अपनी दिनचर्या में कई तरह के बदलाव किए, सोशल आइसोलेशन उसमें से एक है। इस आदत के माध्यम से कोरोना के प्रसार को कम करने में मदद मिल सकती है। हालांकि अध्ययनकर्ताओं ने एक हालिया अध्ययन में पाया है कि सोशल आइसोलेशन के कारण लोगों में डेमेंशिया रोग का खतरा बढ़ रहा है।
डेमेंशिया, दिमाग की बनावट में होने वाले बदलाव के कारण होने वाली बीमारी है, जिसमें दिमाग की क्षमता कम हो जाती है और रोगियों को स्मृति, सोच, आचरण तथा मनोभाव से संबंधित समस्याओं का सामना करना पड़ता है।
सोशल आइसोलेशन का हमारे शरीर पर किस प्रकार से असर होता है इसको जानने के लिए किए गए शोध में वैज्ञानिकों ने पाया कि यह आदत 50 से अधिक आयु वालों में डेमेंशिया के जोखिमों को बढ़ाने वाली हो सकती है। आंकड़ों के मुताबिक भारत में 40 लाख से अधिक लोगों को डेमेंशिया की समस्या है। आमतौर पर 65 की आयु के बाद इस रोग का जोखिम अधिक होता है, पर हाल के वर्षों में इसकी आयु सीमा में भी कमी देखी जा रही है।
पिछले तीन साल से जारी कोरोना महामारी से बचाव के लिए हम सभी ने अपनी दिनचर्या में कई तरह के बदलाव किए, सोशल आइसोलेशन उसमें से एक है। इस आदत के माध्यम से कोरोना के प्रसार को कम करने में मदद मिल सकती है। हालांकि अध्ययनकर्ताओं ने एक हालिया अध्ययन में पाया है कि सोशल आइसोलेशन के कारण लोगों में डेमेंशिया रोग का खतरा बढ़ रहा है।
डेमेंशिया, दिमाग की बनावट में होने वाले बदलाव के कारण होने वाली बीमारी है, जिसमें दिमाग की क्षमता कम हो जाती है और रोगियों को स्मृति, सोच, आचरण तथा मनोभाव से संबंधित समस्याओं का सामना करना पड़ता है।
सोशल आइसोलेशन का हमारे शरीर पर किस प्रकार से असर होता है इसको जानने के लिए किए गए शोध में वैज्ञानिकों ने पाया कि यह आदत 50 से अधिक आयु वालों में डेमेंशिया के जोखिमों को बढ़ाने वाली हो सकती है। आंकड़ों के मुताबिक भारत में 40 लाख से अधिक लोगों को डेमेंशिया की समस्या है। आमतौर पर 65 की आयु के बाद इस रोग का जोखिम अधिक होता है, पर हाल के वर्षों में इसकी आयु सीमा में भी कमी देखी जा रही है।
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अध्ययन में ये बात आई सामने
अमेरिका में, 65 वर्ष से अधिक आयु के 4 में से एक व्यक्ति में डेमेंशिया की समस्या देखी जा रही है। जर्नल ऑफ द अमेरिकन गैरिएट्रिक्स सोसाइटी में प्रकाशित इस शोध के लिए 2011 में 5,022 मेडिकेयर वाले प्रतिभागियों के डेटा को शामिल किया गया। अध्ययन की शुरुआत में 23% लोग कई कारणों से सोशल आइसोलेशन में थे, हालांकि उनमें डेमेंशिया के लक्षण नहीं थे। हालांकि नौ साल के इस अध्ययन के अंत तक 21 फीसदी लोगों में डेमेंशिया की समस्या का निदान किया गया।
लोगों के संपर्क में रहना बहुत आवश्यक
वैज्ञानिकों की टीम ने पाया कि 9 वर्षों के दौरान सोशली आइसोलेट रहने वालों में समय के साथ डेमेंशिया के विकसित होने का जोखिम 27 फीसदी अधिक हो गया। शोधकर्ता बताते हैं कि एक अन्य शोध में भी पाया गया है कि अगर लोग एक दूसरे से जुड़े रहते हैं तो इस जोखिम को 31 फीसदी तक कम किया जा सकता है।
इंसानी प्रवृत्ति एक दूसरे के साथ रहने और अपने सुख-दुख बांटने की है, इसमें होने वाली छेड़छाड़ के कारण कई प्रकार की न्यूरोलॉजिकल और व्यवहारिक समस्याओं का खतरा हो सकता है।