मातृत्व को संसार का सबसे बड़ा सुख माना जाता है। यह नई जिम्मेदारियों का समय भी होता है, जिसके साथ कई तरह की शारिरिक और मानसिक स्वास्थ्य की स्थिति में बदलाव भी आ जाता है। बच्चे के जन्म के उत्साह और खुशी से लेकर भय और चिंता तक, प्रसव काल कई तरह की भावनात्मक चुनौतियों वाला समय माना जाता है। इसी वजह से अक्सर महिलाओं में पोस्टपार्टम डिप्रेशन की समस्या देखने को मिलती है।
इस अनुभव को बेबी ब्लू के रूप में भी जाना जाता है, जिसमें मिजाज में बदलाव, चिंता और सोने में कठिनाई, नींद की कमी और चिड़चिड़ापन जैसी कई तरह की समस्याएं हो सकती हैं।
आमतौर पर प्रसव के बाद पहले दो से तीन दिनों के भीतर ही इस तरह के अनुभव होने शुरू हो सकते हैं, वहीं कुछ महिलाओं में ऐसी दिक्कतें लंबे समय तक भी बनी रह सकती हैं, जिसपर गंभीरता से ध्यान देने की आवश्यकता होती है। प्रसवोत्तर अवसाद या पोस्टपार्टम डिप्रेशन, कोई कमजोरी नहीं है, बल्कि महिलाओं में यह काफी सामान्य है। इस दौरान उनके विशेष ख्याल रखने की आवश्यकता होती है। आइए महिलाओं के जीवन से जुड़ी पोस्टपार्टम डिप्रेशन की इस समस्या को विस्तार से समझते हैं।
पोस्टपार्टम डिप्रेशन क्यों होता है?
स्वास्थ्य विशेषज्ञों के मुताबिक पोस्टपार्टम डिप्रेशन का कोई एक कारण नहीं है, यह कई तरह के शारीरिक और भावनात्मक समस्याओं के संयोजन के कारण होने वाली समस्या है। बच्चे के जन्म के बाद आपके शरीर में हार्मोन (एस्ट्रोजन और प्रोजेस्टेरोन) के स्तर में बदलाव को इसका प्रमुख कारण माना जाता है। इस स्थिति में थायरॉयड ग्रंथि द्वारा उत्पादित हार्मोन्स का भी स्तर तेजी से गिरने लगता है जिसके कारण थकावट, सुस्ती और उदासी महसूस हो सकती है। इसके अलावा नवजात शिशु की देखभाल को लेकर बढ़ी आपकी चिंता को भी पोस्टपार्टम डिप्रेशन का कारण माना जाता है।
पोस्टपार्टम डिप्रेशन में क्या समस्याएं होती हैं?
पोस्टपार्टम डिप्रेशन के लक्षण एक महिला से दूसरी में अलग हो सकते हैं, यह मुख्यरूप से स्थिति के कारकों पर निर्भर करता है। सामान्यतौर पर अवसाद में इस तरह की समस्याएं अधिक देखने को मिलती हैं।
बच्चे के साथ भावनात्मक संबंध बनाने में कठिनाई महसूस होना।
भूख न लगना या सामान्य से अधिक खाना।
अनिद्रा या बहुत अधिक सोना।
अत्यधिक थकान या ऊर्जा में कमी।
उन गतिविधियों में कम रुचि और आनंद लेना, जो आप पहले पसंद किया करते थे।
चिड़चिड़ापन और गुस्सा बढ़ना।
स्पष्ट रूप से सोचने, ध्यान केंद्रित करने या निर्णय लेने की क्षमता में कमी महसूस होना।
बेचैनी, गंभीर चिंता और पैनिक अटैक।
पोस्टपार्टम डिप्रेशन को कैसे ठीक किया जाता है?
यदि प्रसव के बाद आपको भी इस तरह की समस्याओं का अनुभव होता है तो इस बारे में किसी चिकित्सक से सलाह जरूर ले लेनी चाहिए। यदि यह समस्याएं थायरॉयड या किसी अंतर्निहित बीमारी के कारण हो रही है तो इसमें इलाज की आवश्यकता होती है। पोस्टपार्टम डिप्रेशन के सामान्य लक्षणों के लिए मनोचिकित्सा (टॉक थेरेपी या मानसिक स्वास्थ्य परामर्श/काउंसिलिंग) और दवा या दोनों की जरूरत हो सकती है। इस स्थिति में उपचार न लेने से समस्याओं के बढ़ने का जोखिम होता है।
पोस्टपार्टम डिप्रेशन में इन बातों का रखें ध्यान
पोस्टपार्टम डिप्रेशन के लक्षणों को ठीक करने के लिए उपचार के साथ-साथ आपको अपनी जीवनशैली में भी बदलाव करने की आवश्यकता होती है। इसके लिए दिनचर्या में शारीरिक गतिविधि को शामिल करें। इसके साथ पर्याप्त आराम करने की भी कोशिश करें। स्वस्थ भोजन करें और शराब-धूम्रपान जैसे नशे से बचें। प्रसव के बाद महसूस होने वाली भावनात्मक समस्याओं के बारे में परिवार और दोस्तों से बात करें। सकारात्मक सोच रखें इससे परेशानी से जल्द निकलने में मदद मिलती है।