इस भाग दौड़ भरी दुनिया में मानसिक स्वास्थ सम्बन्धी समस्याएं आम हो गयी हैं. मेन्टल हेल्थ भी फिजिकल हेल्थ की तरह ही महत्वपूर्ण है. लेकिन जागरूकता की कमी होने के कारण मेन्टल हेल्थ की समस्या गंभीर होती जा रही है. शहरी क्षेत्रों में काफी हद तक मेन्टल हेल्थ के बारे में लोग जानते है, और इसपर चर्चा भी की जाती है. लेकिन भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी मेन्टल हेल्थ को लेकर कोई विशेष जागरूकता नहीं है.
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मेन्टल हेल्थ क्या है?
डब्लूएचओ के अनुसार मेन्टल हेल्थ मानव जीवन के सबसे महत्वपूर्ण पहलुओं में से एक है। मेन्टल हेल्थ संपूर्ण स्वास्थ्य का एक अभिन्न अंग है। किसी व्यक्ति का व्यवहार, बात करने का तरीका, सोंचने का तरीका उसके मेन्टल हेल्थ पर ही निर्भर है. कोई व्यक्ति जीवन के मुश्किल समय से कैसे निपटता है, वह दोस्ती करने और रिश्ते निभाने में कैसा है? उसका जीवन कैसा रहेगा? उसका करियर कैसा रहेगा, यह सब व्यक्ति के मेन्टल हेल्थ पर निर्भर करता है.
2018 में प्रकाशित एक आंकड़े के अनुसार, 17.6% वयस्क, यानी लगभग 282.6 मिलियन लोग, दुनिया भर में किसी न किसी रूप में चिंता विकार से पीड़ित हैं जो बाद में जीवन में विकसित होता है। डब्ल्यूएचओ के अनुसार, दुनिया भर में 264 मिलियन वयस्क अवसाद से पीड़ित हैं। और ये आधिकारिक संख्या केवल रिपोर्ट किए गए मामलों पर आधारित हैं।
मेन्टल हेल्थ पागलपन नहीं है : जब हम मेन्टल हेल्थ की बात करते हैं, तो अक्सर इसे पागलपन समझ लिया जाता है। क्योंकि मोटे तौर पर हम नहीं जानते कि मानसिक स्वास्थ्य वास्तव में क्या है। मानसिक बीमारी का मतलब पागलपन नहीं है.
मेन्टल हेल्थ मनुष्य के संपूर्ण व्यक्तित्व की मुख्य विशेषताओं को परिभाषित करता है। आम धारणा के विपरीत, मेन्टल हेल्थ केवल पागलपन या मानसिक बीमारी के बारे में नहीं है। बल्कि यह जीवन के व्यवहारिक, मनोवैज्ञानिक और सामाजिक पहलुओं के बारे में है।
जागरूकता की जरूरत : भले ही मेन्टल हेल्थ शारीरिक स्वास्थ्य जितना ही महत्वपूर्ण है, फिर भी जागरूकता न होने की वजह से मानसिक स्वास्थ्य को काफी हद तक नजरअंदाज किया जाता है, अक्सर मेन्टल हेल्थ से जुड़े मुद्दों पर पूरी तरह से ध्यान नहीं जाता है। इसलिए, दुनिया को मेन्टल हेल्थ जागरूकता की जरूरत है।
मेन्टल हेल्थ क्यों महत्वपूर्ण है ?
जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा : जैसा कि हम जानते हैं कि मेन्टल हेल्थ मानव जीवन का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह हमें जीवन जीने, परिस्थितियों से निपटने और बुरे समय में स्थितियों को संभाले में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यदि मानसिक स्वास्थ्य अच्छा नहीं है तो हम दैनिक जीवन के छोटे-छोटे कार्य भी ठीक से नहीं कर सकते हैं। जीवित प्राणियों के जीवन में मानसिक स्वास्थ्य के महत्वपूर्ण योगदान को देखकर हम समझ सकते हैं कि मानसिक स्वास्थ्य क्यों महत्वपूर्ण है।
लॉजिक और इमोशन का केंद्र : मनुष्य अपने जीवन में जो भी करता है, उसके पीछे सिर्फ दो कारण होते हैं. पहला लॉजिकल और दूसरा इमोशनल. किसी भी मनुष्य का पूरा जीवन लॉजिक और इमोशन से ही चलता है. विपरीत परिस्थिति, दुःख, अकेलापन, उदासी, भय, प्यार, नफरत, या जीवन के महत्वपूर्ण निर्णय, जैसे करियर का चुनाव, किसी समस्या से निपटना इत्यादि में लॉजिक और इमोशन का प्रयोग होता है. एक स्वस्थ मस्तिष्क ही जीवन में लॉजिक और इमोशन का सही से इस्तेमाल कर सकता है.
मेन्टल हेल्थ विकार क्यों होते हैं ?
मानसिक रोग या विकार : मानसिक रोग या विकार होने के पीछे कई कारण हो सकते हैं. मानसिक स्वास्थ विकार के (hereditary) वंशानुगत, सामाजिक और आर्थिक परिवेश या व्यक्तिगत कारण भी हो सकते हैं। यह पर्यावरणीय मुद्दों, तनावपूर्ण घटनाओं, लिंग और नस्लीय भेदभाव, पालन-पोषण और कई अन्य कारकों के कारण हो सकता है। सरल शब्दों में, किसी भी व्यक्ति को जीवन में किसी भी समय मानसिक विकार विकसित हो सकता है। अधिकांश मानसिक स्वास्थ्य सम्बन्धी परेशानियां कई कारकों का एक संयोजन हैं।
आर्थिक मुद्दें
आर्थिक और वित्तीय मुद्दे मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं के प्रमुख कारक हैं। डब्ल्यूएचओ द्वारा 2011 में प्रकाशित एक लेख के अनुसार, गरीबी, असमानता, बेरोजगारी जैसे आर्थिक संकट मानसिक स्वास्थ्य विकार का कारण बन सकते हैं । रिपोर्ट में उल्लेख किया गया है कि उच्च वित्तीय असमानता और कठिनाई, सामाजिक भेदभाव और आर्थिक संकट वाले देशों में आत्महत्या की प्रवृत्ति और खुद को नुकसान पहुंचाना आम है। आय असमानता में बढ़ता असंतुलन कई देशों में बढ़ती आत्महत्या दर के सीधे आनुपातिक है।
सामाजिक परिस्थिति
सामाजिक मुद्दों का प्रभाव मानसिक स्वास्थ्य के लिए सबसे प्रमुख कारणों में से एक है। सामाजिक वर्ग की पृष्ठभूमि और सामाजिक पालन-पोषण व्यक्ति के व्यक्तित्व में प्रमुख भूमिका निभाते हैं। सामाजिक, आर्थिक और पर्यावरणीय असमानता के कारण मानसिक विकार जन्म ले सकते हैं। उदाहरण के लिए, भारत, श्रीलंका या अफ्रीकी देशों जैसे केन्या, युगांडा जैसे विकासशील देशों के लोगों को मानसिक स्वास्थ्य विकारों का अधिक खतरा है ।.
जीवन का अनुभव और आघात
जीवन के अनुभव मानसिक विकारों के सबसे बड़े कारकों में से एक हो सकते हैं, व्यक्ति की परवरिश, पारिवारिक पृष्ठभूमि और जीवन भर अनुभव की गई घटनाएं उसके मानसिक स्वास्थ्य और विशेषताओं के प्रमुख निर्धारक हैं। सरल शब्दों में, किसी के जीवन का अनुभव या तो उसके मेन्टल हेल्थ को बना सकता है या बिगाड़ कर सकता है। यदि कोई व्यक्ति अपने जीवन के दौरान दर्दनाक परिस्थितयों के संपर्क में आता है तो उसे मेन्टल हेल्थ संम्बन्धि समस्या हो सकती है।
जैविक कारक (बायोलॉजिकल फैक्टर्स)
मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित करने वाले कई जैविक कारक (बायोलॉजिकल फैक्टर्स) हो सकते हैं। जन्म के दौरान हुई समस्या, वंशानुगत कारक, मादक द्रव्यों का सेवन, विषाक्त पदार्थों के संपर्क में आना, मस्तिष्क दोष या चोट लगना मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं के कुछ कारण हैं। बच्चे के जन्म के दौरान माता-पिता के शराब या अन्य नशीली दवाओं के उपयोग के विकार जन्म से ही बच्चे में गंभीर मानसिक स्वास्थ्य समस्या पैदा कर सकते हैं। 2017 में पबमेड में प्रकाशित एक समीक्षा लेख में बच्चों में माता-पिता की शराब के नशे के प्रभाव पर चर्चा की गई। न केवल बच्चे के जन्म के दौरान बल्कि यह बच्चो के विकाश पर भी प्रभाव डालता है।
प्रमुख मानसिक विकार (कॉमन मेन्टल इलनेस)
डब्लूएचओ के अनुसार मानसिक स्वास्थ्य विकारों को कई अलग-अलग पहलुओं के अनुसार वर्गीकृत किया जाता है, और कई प्रकार के विकार हो सकते हैं। हालांकि, कुछ विकार दूसरों की तुलना में अधिक आम हैं। यहां हम कुछ सबसे आम विकारों पर चर्चा करेंगे जो पूरी दुनिया को सामाजिक, मनोवैज्ञानिक और आर्थिक रूप से प्रभावित कर रहे हैं।
डिप्रेशन (अवसाद)
डिप्रेशन दुनिया भर में सबसे आम मेन्टल इलनेस में से एक है। WHO द्वारा प्रकाशित एक लेख के अनुसार विश्व में लगभग 64 मिलियन लोग इस विकार से प्रभावित हुए हैं। WHO अनुसार, पुरुषों की तुलना में महिलाएं इस विकार के प्रति अधिक प्रभावित होती हैं। अमेरिकन साइकियाट्रिक एसोसिएशन ने अवसाद (डिप्रेशन) को मुख्य रूप से उदासी, खुशी, रुचि (interest) में कमी, लम्बे समय तक दुखी बने रहना के रूप में परिभाषित किया है। इससे भूख में कमी, थकान आदि के साथ आत्म विश्वास में कमी भी हो सकती है.
डिप्रेशन के लक्षण
- लगातार उदासी या निराशा की भवना
- रूचि (interest) में कमी होना
- भूख में बदलाव, (कम खाना या भूख का ज्यादा बढ़ जाना)
- हमेशा थका हुआ महसूस करना
- वजन बढ़ना या वजन कम होना
- अनियमित नींद, नींद की कमी या बहुत अधिक सोना
- उन चीजों में मन न लगना जो पहले अच्छी लगती थी, जैसे कोई हॉबी या खेल
- आत्महत्या के ख़याल आना
एंग्जायटी ( चिंता)
एंग्जायटी लंबे समय तक अत्यधिक चिंतन (ओवर थिंकिंग, या भय) की भावना है। इसके साथ ही बेचैनी, थकान, चिड़चिड़ापन और नींद में बदलाव आदि भी एंग्जायटी में देखने को मिलता है। इसे कई भागों में बांटा गया है. सामान्यीकृत चिंता विकार (Generalized anxiety disorder), सामाजिक चिंता विकार (Social anxiety disorder), पैनिक डिसऑर्डर (Panic disorder), पोस्ट ट्रॉमेटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर (PTSD)
सामाजिक चिंता विकार (Social anxiety disorder)
इसमें व्यक्ति लोगो के बीच जाने में असहज महसूस करता है, स्कूल कॉलेज, शादी समारोह या अन्य भीड़ वाली जगह जाने से बचता है. वह स्वयं में आत्मविश्वास की कमी महसूस करता है. उसको लगता है कि लोग उसे जज करेंगे. कई बार व्यक्ति सोंचता है कि उसका पहनावा, उसका रूप, या उसकी आवाज लोगो को पसंद नहीं आएगी, सोशल एंग्जायटी किसी भी व्यक्ति के जीवन को कठिन बना देता है. ऐसे में वह लोगो से दूर रहना शुरू कर देता है. ऐसे लोगों के दोस्त बहुत कम होते है, या सोशल एंग्जायटी में लोग दोस्ती करने या रिश्ते बनाने से कतराते हैं.
Generalized anxiety disorder
भारत में प्रति वर्ष 10 मिलियन से अधिक मामले सामान्यीकृत चिंता विकार (Generalized anxiety disorder) से सम्बंधित होते है।इसमें लोग अपने रोजाना के कामकाज के लिए परेशान रहते हैं, अपने से ही जूझते रहते हैं। इस एंग्जाइटी में लगातार चिंता, बेचैनी और एकाग्रता में परेशानी शामिल है।व्यक्ति आम तौर पर सिरदर्द मह्सूस करता है, और उसका स्वभाव चिड़चिड़ा हो जाता है.
पैनिक डिसऑर्डर (Panic disorder)
यह चिंता विकार (एंग्जायटी डिसऑर्डर) का चरम रूप है। यहां व्यक्ति किसी भी संभावित ट्रिगर के कारण, अत्यधिक भय महसूस कर सकता है, जिससे पैनिक अटैक हो सकता है। सीने में दर्द, पसीना आना, दिल की धड़कन में वृद्धि साँस लेने में दिक्कत आदि हो सकती है, कुछ पैनिक अटैक के लक्षणों की तुलना हार्ट अटैक से की जा सकती है।
पोस्ट ट्रॉमेटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर (PTSD)
पीटीएसडी सामान्यतः उन लोगो को होता है जिन्होंने अपने जीवन में कुछ दुखद अनुभवों या परिस्थितियों का सामना किया है. कई बार किसी हादसे के संपर्क में आना, किसी प्रिय व्यक्ति की मृत्यु हो जाना, बचपन या किशोर अवस्था में शारीरिक, मानसिक या यौन शोषण का शिकार होना भी पीटीएसडी का कारण हो सकता है. इसमें व्यक्ति को पुरानी दुखद घटनाओं की यादें विचलित कर देती हैं.
एंग्जायटी डिसऑर्डर और सामान्य एंग्जायटी में अंतर
सामान्य एंग्जायटी
किसी असली समस्या या स्थिति के लिए परेशान या भयभीत होना नार्मल एंग्जायटी है.
यह किसी समस्या या विशेष स्थिति में होने वाला भय है.
यह भय या चिंता तभी तक रहती है जब तक कि कोई समस्या या कठिन स्थिति रहती है.
नार्मल एंग्जायटी (भय या चिंता) तभी महसूस होती है, जब कोई समस्या या कठिन स्थिति रहती है.
एंग्जायटी डिसऑर्डर
इसमें व्यक्ति काल्पनिक चिंता या भय महसूस करता है, वो ऐसी चीजों और स्थितियों के बारे में सोंच कर परेशान होता है, जो शायद कभी सच न हो. इसमें व्यक्ति का नियंत्रण नहीं रहता .
व्यक्ति बिना कारण ही भय या चिंता में रहता है.
यह लंबे समय तक रह सकती है, किसी स्थिति या समस्या का समाधान हो जाने के बाद भी व्यक्ति भयभीत रहता है।
द्विध्रुवी विकार (बाइपोलर डिसऑर्डर)
बाइपोलर डिसऑर्डर मे व्यक्ति का मिजाज बदलता रहता है, (मूड स्विंग होता)। इसमें व्यक्ति अचानक बिना वजह खुशी या दुख की भावना महसूस करता।
बाइपोलर डिसऑर्डर में उन्माद का एक स्वभाव कई दिनों के लिए या कुछ घंटों तक भी हो सकता है। इसमें कभी खुशी की भावना महसूस हो सकती है. जहां व्यक्ति अत्यधिक जोश और ऊर्जा की उत्साहपूर्ण भावना महसूस करता है. वहीं कभी व्यक्ति अकारण मायूश, निराश और दिशाहीन मसहूस करता है
ऑब्सेसिव कम्पलसिव डिसऑर्डर (ओसीडी)
ओसीडी में लोगों को दोहराए जाने वाले विचार, संवेदनाएं होती हैं जहाँ वो एक कार्य को लगातार दोहराते हैं। मसलन अगर किसी को ओसीडी है तो उसे लगातार शन्देह रहता है, जैसे वो घर से निकलने के बाद ताला बंद करता है, लेकिन थोड़ी दूर जाने के बाद वो सोंचते है कि शायद उसने ताला नहीं लगाया, फिर वो दोबारा जाकर ताला चेक करता है. ओसीडी बेहद परेशान करने वाला हो सकता है।
ओसीडी वाले रोगी को रोजमर्रा की जिंदगी में अत्यधिक कठिनाई और व्यवधान का सामना करना पड़ सकता है। ओसीडी वाले लोग आमतौर पर जानते हैं कि उनके संकट का कारण अवास्तविक है। लेकिन फिर भी इन विघटनकारी विचारों को रोकना बेहद मुश्किल हो सकता है। बच्चों या किशोरों में गंभीर ओसीडी उन्हें हिंसक और क्रोधित कर सकती है।
आत्महत्या : मेन्टल इलनेस का एक दुष्प्रभाव
आत्महत्या दुनिया भर में मौत के प्रमुख कारणों में से एक है। अधिकांश मनोवैज्ञानिकों और मनोचिकित्सकों का मानना है कि आत्महत्या अचानक लिया हुआ निर्णय नहीं होता, बल्कि लंबे समय तक मानसिक तनाव या मानसिक विकारों का परिणाम है। डब्लूएचओ के अनुसार पूरी दुनिया में हर 40 सेकंड में कोई न कोई व्यक्ति आत्म हत्या करता है. आत्महत्या के प्रयासों को रोकने के लिए हमें उन सभी मानसिक समस्याओं के बारे में अधिक जागरूक होने की आवश्यकता है, जिनसे एक व्यक्ति गुजर रहा है। जब कोई मानसिक विकार का लक्षण दिखाई दे, या कोई व्यक्ति जान देने कि बात करे तो प्रोफेशनल मदद लेनी चाहिए।
कैसे करें मदद
सबसे महत्वपूर्ण यह है कि किसी ऐसे व्यक्ति के प्रति दया और सहानुभूति दिखाना जो कठिन समय से गुजर रहा हो. अगर कोई व्यक्ति लगातार उदास या मायूस दिख रहा है तो उससे बात करिए. सहानुभूति पूर्वक किसी व्यक्ति कि बात सुनकर आप उसके दुःख को कम कर सकते है, साथ ही आप उसे प्रोफेशनल हेल्प लेने के लिए भी प्रेरित कर सकते हैं. इन छोटे प्रयासों से आत्महत्या के मामलों को रोक सकता है।
स्वस्थ मेन्टल हेल्थ के उपाय
स्वस्थ दिनचर्या
दैनिक जीवन में सकारत्मक बदलाव व हेल्दी हैबिट्स को अपना कर हम खुद को मानसिक और इमोशनल रूप से स्वस्थ रख सकते हैं. जैसे कि-
- भरपूर नींद
- अच्छा खाना
- व्यायाम करना, टहलना
- किसी खेल में शामिल होना, जैसे क्रिकेट, कब्बडी या फुटबॉल आदि
- किताबें पढ़ना
- पसंदीदा संगीत सुनना.
- अपने विचारों को डायरी में लिखना.
- नए दोस्त बनाना.
भावनाओं का सम्मान
अपनी भावनाओं (इमोशंस) को कभी मत दबाएं. ज्यादा समय तक भावनाओं को खुद में दबाने से स्ट्रेस, तनाव व अवसाद की स्थिति उत्पन्न हो सकती है. मसलन अगर आप किसी पर गुस्सा हैं, या आपको किसी की कोई बात पसंद नहीं है तो आप उससे स्पस्ट और संयत रूप में अपना गुस्सा या अपनी बात जाहिर करें. इसी तरह प्यार, दुःख, ख़ुशी या भय जैसी भावनाओ को भी न तो नजरअंदाज करें और न ही दबाएं.
खुद की तुलना दूसरे से कभी मत करें. हर व्यक्ति की अपनी अलग क्षमता है, कोई व्यक्ति किसी एक चीज में माहिर होता है, तो अन्य व्यक्ति किसी दूसरी चीज में. इसलिए न तो खुद की तुलना किसी दूसरे से करें, न ही खुद को कमजोर महसूस करें. बल्कि आप अपना समय अपने स्किल्स को मजबूत करने में लगाए. नई चीजें सीखें.
मेन्टल हेल्थ वेलनेस की मुख्य बाधा
जागरूकता की कमी : आज भी भारत में मानसिक बीमारी से पीड़ित लोग अक्सर मंदिरों और तीर्थस्थलों में अपना समाधान ढूंढते हैं, अधिकांश लोग डॉक्टरों के पास नही जाते। भारत में मानसिक रोगो के बढ़ने और पीड़ितों का इलाज न हो पाने के पीछे की बड़ी वजह है, जागरूकता की कमी. कई मानसिक रोगों में व्यक्ति असामन्य व्यव्हार करता है. जैसे बेवजह की बाते करना, किसी अदृश्य चीज को देखने का दावा करना या हिंसक हो जाना. ऐसे में लोग इन लक्षणों को भूत, प्रेत की बाधा समझ लेते हैं. खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में.
मेन्टल हेल्थ से जुड़ा स्टिग्मा (stigma) स्टिग्मा (कलंक) मेन्टल हेल्थ जागरूकता में बहुत बड़ी बाधा है. खासकर भारत में मेन्टल इलनेस से पीड़ित लोगों को नीचा दिखाया जाता है. कई बार “पागल” या “मेन्टल” कह कर उनका मजाक उड़ाया जाता है. यहाँ तक की दोस्त और रिस्तेदार मेन्टल हेल्थ को गंभीरता से नहीं लेते हैं. मेन्टल हेल्थ स्टिग्मा किसी भी पीड़ित व्यक्ति की स्थिति को गंभीर बना देता है.
ऐसे में व्यक्ति लोगों से बचता है, अपनी समस्या के बारे में लोगों से बात नहीं करता. अपनी स्थिति को छुपाता है. वो इलाज लेने से भी कतराने लगता है. इतना ही नहीं बल्कि मानसिक विकार से पीड़ित व्यक्ति के परिवार वालों को भी ताने दिए जाते हैं. इन सब चीजों से मेन्टल इलनेस गंभीर हो जाता है. कई बार व्यक्ति आत्महत्या करने के लिए मजबूर हो जाता है. हमें समझना चाहिए की मानसिक विकार भी शारीरिक रोगों की तरह ही आम है. यह किसी भी धर्म, जाती, लिंग या आयु के व्यक्ति को हो सकता है. एक जिम्मेदार नागरिक होने के नाते हमारा दायित्व है कि, हम मेन्टल हेल्थ जागरूकता को बढ़ाएं और लोगो कि मदद करें.
कहाँ मिलेगी सहायता ?
हेल्दी नोट्स
हमारी वेबसाइट पर आपको मेन्टल हेल्थ सम्बन्धी महत्वपूर्ण जानकारियां मिल जाएँगी. साथ ही अगर आप अपनी समस्या को लेकर बात करना चाहते हैं तो आप हेल्दी नोट्स के बाय ब्लूज सेक्शन पर जाकर हमसे बात कर सकतें है. हमारे वालंटियर ट्रेंड है. यहाँ आपको सहायता मिल जाएगी.
निशुल्क सरकारी हेल्पलाइन
मेन्टल हेल्थ की गंभीरता को देखते हुए भारत सरकार ने निशुल्क हेल्पलाइन जारी की है. यहाँ (1800-599-0019) कॉल करके आप प्रोफेशनल सहायता प्राप्त कर सकते हैं. ये हेल्पलाइन पूर्णत: निशुल्क व 24 घंटे उपलब्ध है. यहाँ आप हिंदी, असमिया, तमिल, मराठी, ओडिया, तेलुगु, मलयालम, गुजराती, पंजाबी, कन्नड़, बंगाली, उर्दू और अंग्रेजी भाषा में सहायता प्राप्त कर सकते हैं. साथ ही आप अपने नजदीकी सरकार हॉस्पिटल जाकर भी मेन्टल हेल्थ सम्बन्धी सहायता प्राप्त कर सकते हैं.