नेटफ्लिक्स ओरिजिनल पर रिलीज हुई फिल्म कला एक ऐसी गायिका की कहानी है जो खुद से लड़ रही है। तृप्ति डिमरी, बाबिल खान, स्वास्तिका मुखर्जी और वरुण ग्रोवर फिल्म के प्रमुख कलाकार हैं। कला का अपनी माँ के साथ संघर्ष पूर्ण सम्बन्ध व स्याह अतीत उसे हर पल कचोटता रहता है. कला खुद को किसी पिजंरे में बंद एक पंछी की तरह देखती है. वह प्यार और अपने पन के चाहत की उम्मीद में जी रही हैं,और उसे इस बात का अहसास भी है की जिस प्यार के स्पर्श को वो ढूंढ रही है, शायद व उसे कभी नहीं मिल पाएगा.
अन्विता दत्त की इस फिल्म में अंतर्मन की लड़ाई, मानसिक संघर्ष, और रिश्तों के कड़वेपन के साथ प्यार की कोमलता भी देखने को मिलती है.
इस फिल्म की खूबी यह है कि, यह बड़े पैमाने पर उपेक्षित मुद्दे “मानसिक स्वास्थ्य” के संघर्ष को बड़ी ही सहजता से बयां करती है. इस आलेख में हम कला फिल्म के 5 महत्वपूर्ण मेन्टल हेल्थ संदेश के बारे में बात करेंगे.
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1 – इच्छा और भावना को अमान्य न करें:
शुरुआत से ही यह फिल्म हमें यह सिखाने की कोशिश करती है कि हमें कभी भी किसी की भावनाओं को अमान्य नहीं करना चाहिए। कला अपनी इच्छा को अपनी माँ से साझा करने की कोशिश करती है, लेकिन उसकी माँ उसकी इच्छाओं को अमान्य करती रहती है। माँ के द्वारा भावनाओं को उपेक्षित किये जाने पर कला खुद को अँधेरे में कैद कर लेती है. वह धीरे धीरे अंतरकलह में फंसने लगती है. इसके बाद से वह अपनी इच्छा और भावनाओं को दबाने लगती है, जो कला को उसके दुखद अंत की ओर ले जाता है।
किसी के विचारों, भावनाओं या व्यवहार को खारिज करने या अस्वीकार करने की क्रिया को भावनात्मक अमान्यता कहा जाता है, भावनात्मक अमान्यता यानि “इमोशनल इनवालिडेशन”. आमतौर पर किसी की भावनाओं को नजरअंदाज करना सामान्य लगता है. लेकिन मानसिक स्वास्थ्य पर इसका गहरा प्रभाव पड़ता है.
कई अध्ययनों से पता चलता है कि किसी की भावनाओं को नकारने व नजरअंदाज करने से व्यक्ति के अंदर कई तरह की मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याऐं जन्म ले सकती हैं. हमें कभी भी किसी की भावना या इच्छा को अमान्य नहीं करना चाहिए। अगर हम किसी से सहमत नहीं हैं, तो कम से कम हमें उनकी बात सुननी चाहिए. विनम्रता से बात करना और बात को सुनना किसी की भावनाओं को सीधे तौर पर अमान्य करने से कहीं बेहतर है।
अक्सर देखा जाता है कि माता-पिता अपने बच्चों की भावनाओं और इच्छाओं को अमान्य कर देते हैं। यदि आप माता-पिता हैं तो आपको यह सीखना चाहिए कि अपने बच्चे की भावनाओं को अमान्य करना उन्हें भावनात्मक और मानसिक रूप से नुकसान पहुँचा सकता है. यदि कोई बच्चा ऐसे परिवेश में बड़ा होता है जहाँ उसकी भावनाओं व इच्छाओं को कोई महत्व नहीं दिया जाता, तो वह भविष्य में स्ट्रेस को संभालना या अपनी भावनाओं को प्रबंधित करना नहीं सीख सकता है.
2 – भावनाओं को व्यक्त करना :
जैसा की हमने पहले बताया है की कला अपनी माँ द्वारा उपेक्षित होने पर अपनी भावनाओं को दबाने लगती है. जिसके बाद से ही उसके अंदर चिंता व घबराहट (एंग्जायटी) पैदा होने लगती है. वह अपनी भावनाओं को न तो काबू कर पाती है और न ही अपनी भावनाओं को किसी से साझ करती है. जिससे की धीरे धीरे उसे और ज्यादा समस्या होने लगती हैं.
मनोविज्ञान कहता है इमोशन को सप्रेस करना यानि भावनाओ को दबाने से कई तरह की मानसिक स्वास्थ समस्यांए जैसे डिप्रेशन व एंग्जायटी होने का खतरा बढ़ जाता है, जबकि इमोशन को एक्सप्रेस करने यानि भावनाओं को व्यक्त करने से मानसिक तनाव व चिंता होने का खतरा कम हो जाता है. कई शोध इस बात की पुस्टि करते हैं. इसलिए कभी भी अपनी भावनाओं को दबाइए मत, और न ही कभी खुद की भावनाओं की उपेक्षा करिये.
दुःख, ख़ुशी, गुस्सा या प्यार कोई भी भावना आपके मन में है, उसे दबाइये मत. बल्कि कोशिश करिये की आप अपनी भावनाओं को अपने परिवार, दोस्त या रिश्तेदारों के साथ साझा करिये. अगर आपके पास कोई ऐसा कोई नहीं है जिससे की आप अपनी भावनाएं साझा कर सकतें है तो, उन्हें डायरी पर लिखिए, या मेन्टल हेल्थ हेल्पलाइन पर बात करिये. आप चाहे तो हमसे भी बात कर सकतें है.
3 पोस्टपार्टम डिप्रेशन :
फिल्म के शुरुआत में हमें पता चलता है की कला की माँ जुड़वाँ बच्चो को जन्म देती है. जिसमे काला तो जिन्दा बच जाती है लेकिन उसका जुड़वाँ भाई नहीं बच पाता. जिसके बाद काला की माँ को पोस्टपार्टम डिप्रेशन की समस्या हो जाती है.
प्रसवोत्तर अवसाद यानि पोस्टपार्टम डिप्रेशन (पीपीडी) शारीरिक, भावनात्मक और व्यवहारिक परिवर्तनों का का नतीजा है. कुछ महिलाओं में बच्चे को जन्म देने के बाद यह समस्या देखने को मिलती है. पीपीडी अवसाद (डिप्रेशन) का एक रूप है जो प्रसव के 4 सप्ताह के भीतर शुरू होता है. प्रसव के बाद अवसाद का निदान न केवल प्रसव और शुरुआत के बीच की अवधि पर बल्कि अवसाद की गंभीरता पर भी आधारित होता है.
पश्चिमी देशों और भारत के महानगरों में तो पोस्टपार्टम डिप्रेशन की जागरूकता है लेकिन आज भी भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में पोस्टपार्टम डिप्रेशन के बारे में लोग न के बराबर जानते हैं. कला फिल्म ने महिलाओं से जुड़े इस गंभीर मुद्दे को जीवंत तरीके से दर्शाया है.
4- आत्महत्या :
सुसाइड यानि की आत्महत्या पूरे विश्व के लिए एक बड़ी चुनौती है. डब्लूएचओ के अनुसार हर 40 सेकण्ड्स में कोई न कोई व्यक्ति आत्म हत्या करता है. आत्म हत्या के पीछे कई वजह हो सकती हैं. लेकिन आत्महत्या के पीछे मानसिक स्वास्थ सम्बन्धी मुद्दे अहम् है.
आज भी भारत में आत्महत्या पर बात नहीं की जाती और न ही इसके रोकथाम के लिए कोई ठोस उपाय किये गए है. आत्महत्या को रोकने के लिए सबसे प्राथमिक और महत्वपूर्ण चरण है इसके बारे में बात करना और जागरूकता फैलाना. फिल्म में पहले जगन अपनी आवाज खोने की वजह से हतोऊत्साहित होने पर आत्म हत्या कर लेता है और फिर फिल्म के आखिर में कला अंतर कलह की वजह से आत्म हत्या कर लेती.
आमतौर पर कहा जा सकता है की आत्महत्या को रोकना मुश्किल है क्यूंकि हमें पता नहीं होता की कौन व्यक्ति कब आत्म हत्या करेगा. लेकिन ऐसा नहीं है. आत्म हत्या करने वाला व्यक्ति प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से सहायता मांगता है. लेकिन कई बार हम लोग ही इसे नजर अंदाज कर देते हैं. इस तथ्य को फिल्म में जगन और कला के आत्महत्या करने के पहले दर्शाया गया है. जहाँ दोनों लोग एक ही बात बोलते हैं की “शोर है यहाँ, डर है यहाँ…” कोई भी व्यक्ति अपनी जान नहीं देना चाहता, वो चाहता है की कोई उसे बचा ले, उसे रोक ले, लेकिन कई बार हम ही इन छोटे संकेतों को नजरअंदाज कर देतें हैं.
इसलिए ध्यान रखिये की जब भी कोई व्यक्ति, दोस्त या रिस्तेदार किसी समस्या से जूझ रहा है और वो आपसे अपनी परेशानी साझा करता है तो उसे आप नजर अंदाज मत करिये बल्कि ध्यान से सुनिए. और कोशिश करिए की आप उस व्यक्ति को मानसिक स्वास्थ विशेषज्ञों की सहायता दिला सकें. अगर आप किसी मानसिक स्वास्थ चिकित्सक को नहीं जानतें तो सरकार द्वारा जारी मेन्टल हेल्प लाइन पर संपर्क कर सकतें है. आपका छोटा सा प्रयास किसी की जिंदगी बचा सकता है.
5 – मानसिक स्वास्थ संबंधी समस्याएं असली हैं :
आज भी भारत में मानसिक स्वास्थ सम्बन्धी मुद्दों पर चर्चा नहीं की जाती. बल्कि देखा गया है की कई बार लोग कहतें है की मानसिक स्वास्थ सम्बन्धी समस्याएं जैसे डिप्रेशन और एंग्जायटी असल में होती ही नहीं है. ये सिर्फ मन का वहम है.
लेकिन ऐसा नहीं मानसिक स्वास्थ सम्बन्धी समस्याएं वास्तव में होतीं है और समय में सहायता न मिलने पर इसके परिणाम दुखद और घातक हो सकतें है. इसलिए डिप्रेशन, एंग्जायटी जैसी समस्याओं को हल्के में न लें. बल्कि पेशेवर मानसिक स्वास्थ चिकित्सक से परामर्श और उपचार लें. जिस तरह से शारीरिक बीमारियां असली हैं और समय पर इलाज न मिलने पर जानलेवा साबित हो सकती हैं. ठीक उसी तरह मानसिक स्वास्थ समस्याएं भी है, जिन्हे हमें गंभीरता से लेना चाहिए.
सार
कला फिल्म मानसिक स्वास्थ सम्बन्धी मुद्दों को उजागर करते हुए हमें ये बताने की कोशिश करती है की आज के समय में हमें मानसिक स्वास्थ सम्बन्धी मुद्दों पर बात करनी चाहिए. और जागरूगता फैलानी चाहिए. कला फिल्म मेन्टल हेल्थ की पैरवी करने वाली फिल्म है जिसमे मानसिक स्वास्थ की गंभीरता का संदेश दिया गया है, हर व्यक्ति को यह फिल्म जरूर देखनी चाहिए. जिससे की हम खुद मानसिक स्वास्थ के प्रति सचेत व सजग हो सकें.