भारत में किशोरों (टीन एजर्स) का मानसिक स्वास्थ्य

Why Every Hour One Student Commits Suicide in India

 

भारत में चार में से एक किशोर (टीन एजर) डिप्रेशन या एंग्जायटी से ग्रस्त है। 2018 में आत्महत्या से 10519 छात्रों की मौत हुई। एनसीआरबी के आंकड़ों के मुताबिक, भारत में हर घंटे एक छात्र आत्महत्या का प्रयास करता है.

2007 के बाद से छात्र आत्महत्या की दर में 52 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। भारत में हर घंटे कम से कम एक छात्र आत्महत्या करता है। वर्ष 2019 में पिछले 25 वर्षों में आत्महत्या से सबसे अधिक (10,335) मौतें दर्ज की गईं। यानि की हर एक दिन लगभग 28 स्टूडेंट्स ने सूइसाइड किया. 1995 से 2019 तक, भारत ने 1.7 लाख से अधिक छात्रों ने आत्महत्या की.

भारत में सबसे विकसित राज्यों में से एक होने के बावजूद, महाराष्ट्र में सबसे अधिक (स्टूडेंट सूइसाइड ) के आंकड़े दर्ज किये गए. 2019 में, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, मध्य प्रदेश, कर्नाटक और उत्तर प्रदेश में कुल छात्र आत्महत्याओं का 44% हिस्सा था। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) द्वारा संकलित आंकड़ों के अनुसार, भारत में हर घंटे एक छात्र आत्महत्या करता है, हर दिन लगभग 28 ऐसी आत्महत्याएं होती हैं।

2018 में महाराष्ट्र में छात्रों की आत्महत्या की सबसे अधिक संख्या 1,448 थी, इसके बाद तमिलनाडु में 953 और मध्य प्रदेश में 862 छात्र थे। एनसीआरबी के आंकड़ों से पता चलता है कि 2018 में 10,159 छात्रों ने आत्महत्या की, 2017 में 9,905 और 2016 में 9,478 की वृद्धि हुई। एक लैंसेट अध्ययन में कहा गया है कि भारत में आत्महत्या की मृत्यु दर दुनिया में सबसे अधिक है, और वयस्क आत्महत्या से होने वाली मौतों का एक बड़ा हिस्सा 15 से 29 वर्ष की उम्र के बीच होता है।

इन सभी आंकड़ों से संकेत मिलता है कि एक राष्ट्र के रूप में हमें केवल एक ही बात पर चर्चा करने की आवश्यकता है: और वो है किशोरों का मानसिक स्वास्थ्य तीन एजर्स यानि मेन्टल हेल्थ, जिसे हम भारतियों ने लम्बे समय तक अनदेखा किया है.

विशेषज्ञों का अनुमान है कि 50% मानसिक रोग 14 साल की उम्र से शुरू होते हैं, और 75% 24 साल की उम्र में शुरू होते हैं. गौर करने वाली बात है की भारत की आधी से ज्यादा आबादी का हिस्सा 25 साल से कम उम्र के लोगों की है. कोविड महामारी ने मानसिक रोग और मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दों को भी बढ़ा दिया है। अभी आप अंदाजा ही लगा सकते हैं कि किशोरों के लिए यह परिस्थिति कितनी चुनौतीपूर्ण होगी।

इन सबके बावजूद, टीनएजर्स को अक्सर अपने फोन से जुड़े रहने के रूप में देखा जाता है। हम बच्चो को ताना मारते रहते है कि वे हर समय सोशल मीडिया चलाते रहते हैं.

लेकिन हम अक्सर इस तथ्य को नज़रअंदाज कर देते हैं कि, किशोरावस्था एक विशेष रूप से चुनौतीपूर्ण समय होता है. क्योंकि इसमें तीन एजर्स के शरीर में बहुत सारे बदलाव होते हैं, जबकि उनका दिमाग बहुत अधिक कन्फ्यूजन और अनाव्यश्यक थॉट्स से भरा होता है.

तीन एजर्स जब किसी मेन्टल हेल्थ इशू या बुरे समय से गुजर रहे होते हैं तो वे अपने माता पिता को स्पस्ट संकेत देते हैं. उनके व्यवहार में कई परिवर्तन आ जाते हैं. यदि माता-पिता उस बदलाव को गंभीरता से नहीं लेते हैं, तो निस्संदेह, किसी भी अन्य बीमारी की तरह, मेन्टल इलनेस भी घातक हो जाती है.

तीन एजर्स (किशोर) सिर्फ परीक्षाओं और ग्रेड के बारे में चिंता नहीं करते, बल्कि उनका दिमाग कई अन्य उलझनों से भरा होता है. यह कहना उचित होगा कि सेक्स एजुकेसन (यौन शिक्षा) का मानसिक स्वास्थ्य से गहरा संबंध है. किशोर अवस्था में शरीर और मस्तिष्क कई बदलावों से गुजरता है. किशोरों को यह समझने की जरूरत है कि, उनके साथ क्या हो रहा है. आखिर क्यों वे ओपोजिट सेक्स के लोगों कि तरफ आकर्षित होते हैं .

तीन एजर्स के पास ओपोजिट सेक्स के लोगों के साथ बातचीत करने का सही तरीका नहीं होता है. वे नहीं जानते कि सीमाएँ कैसे निर्धारित की जाती हैं। भारत में तीन एजर्स को सेक्स के बारे में जो भी जानकारी मिलती है उसका जरिया या तो पोर्न फिल्मे होती है या तो दोस्त.

इसके अलावा किशोरावस्था के दौरान शरीर में होने वाले कई बदलाव भी हैं. तीन एजर्स के हार्मोन नियंत्रण से बाहर होते हैं , और वे अन्य लोगों के प्रति बहुत आकर्षित होते हैं। इस वजह से, डेटिंग और FOMO से किशोरों में इन्सिक्युरिटी बढ़ जाती है.

अगर आप एक तीन एजर हैं, और यदि आपको लगता है कि आपको डिप्रेशन या एंग्जायटी है या आप ठीक महसूस नहीं कर रहे हैं तो, लोगों की मदद लें। दोस्तों और रिश्तेदारों से बात करें। हेल्पलाइन नंबर पर बात करें। अपने माता-पिता से बात करें। और अगर आपके माता-पिता आपको नहीं समझते हैं, तो उन्हें YouTube या मानसिक स्वास्थ्य से संबंधित अन्य ऑनलाइन स्रोतों के माध्यम से बताएं कि आप अकेले नहीं हैं, बहुत से लोग मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं से जूझ रहे हैं।

यदि आप माता-पिता हैं, तो यह आपका कर्तव्य है कि आप अपने बच्चो का ख्याल रखें, आप देखे कि आपका बच्चा ठीक से सो रहा है, ठीक से खा रहा है। क्या उनके मूड और आदतों में कोई बदलाव आया है? क्या वह थका हुआ महसूस कर रहा/रही है? या उसने लोगों से मिलना-जुलना और बात कम कर दिया है. बच्चों की मदद करने के बहुत सारे तरीके हैं, अगर आप सुनिश्चित नहीं हैं कि कहां से शुरू करें तो आप मुफ्त मानसिक स्वास्थ्य हेल्पलाइन नंबरों पर भी कॉल कर सकते हैं।

साथ ही, माता-पिता को अपने बच्चों के प्रति अधिक सतर्क होना चाहिए। उनसे उनकी समस्याओं के बारे में बात करें, क्योंकि अगर हम किशोर मानसिक स्वास्थ्य कि समस्याओं को नजरअंदाज करते हैं, तो यह समस्या गहरी और बुरा प्रभाव डाल सकती है, और उनके एडल्ट लाइफ (वयस्क जीवन) पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकती है।

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