शराब और धूम्रपान जितनी घातक है सोशल मीडिया की लत

Social media addiction is as deadly as alcohol and smoking
स्कूल ने सोशल मीडिया प्लेटफार्म्स पर किया केस

न्यूयॉर्क टाइम्स की एक रिपोर्ट के अनुसार अमेरिका के सिएटल पब्लिक स्कूल ने सोशल मीडिया को ‘मेंटल हेल्थ क्राइसेस’ बताते हुए कई सोशल मीडिया कंपनियों पर केस किया है। शिकायत में कहा गया है- सोशल मीडिया बच्चों के मानसिक विकास में बड़ी बाधा बन रही है।

बच्चों का पढ़ाई में मन नहीं लग रहा है और उनके व्यवहार में भी अजीब तरह का परिवर्तन देखा जा रहा है। बच्चे कुतर्क करते हैं, रवैया अड़ियल हो गया है और यह उनके उम्र के साथ होने वाले मानसिक विकास को भी प्रभावित कर रहा है। इसकी जिम्मेदारी कौन लेगा? बच्चों में तनाव-चिंता और अवसाद के मामले भी इस वजह से तेजी से बढ़ रहे हैं।

बच्चों में बढ़ रही है निराशा की भावना

अपनी शिकायत में स्कूल ने कहा, साल 2009 से 2019 के बीच लगातार निराश और हतोत्साहित महसूस करते रहने वाले बच्चों की संख्या में 30 फीसदी का इजाफा देखा गया है। ये कंपनियां विशेषतौर पर बच्चों को आकर्षित करने वाले कंटेट प्रसारित करती हैं जिनसे उनका वॉच टाइम बढ़े, पर दूसरी तरह यह बच्चों में लत का रूप लेती जा रही है, जिसका मानसिक स्वास्थ्य पर नकारात्मक असर हो रहा है।

स्कूल ने केस में कहा है, बच्चों में दिख रहे असामान्य व्यवहारिक बदलाव को देखते हुए हमें अपने पाठ्यक्रम को संशोधित करना पड़ा है, जिसमें विषय के रूप में सोशल मीडिया के दुष्प्रभावों को भी शामिल किया गया है।

मानसिक स्वास्थ्य को लेकर अध्ययन

प्यू रिसर्च सेंटर के अनुसार, अमेरिका में 69% वयस्क और 81% किशोर सोशल मीडिया का इस्तेमाल करते हैं। इन लोगों का ज्यादातर समय सोशल मीडिया पर ही बीतता है। जिसके कारण अस्पतालों में चिंता, उदासी या बीमार महसूस करने वाले लोगों की संख्या बढ़ रही है। साल 2015 के कॉमन सेंस सर्वे में पाया गया कि किशोर हर दिन 9 घंटे तक ऑनलाइन सर्च में अपना समय बिता रहे हैं।

साल 2017 के अध्ययन में कनाडाई शोधकर्ताओं ने पाया कि जो छात्र प्रतिदिन दो घंटे से अधिक समय तक सोशल मीडिया का उपयोग करते हैं, उनमें मानसिक स्वास्थ्य विकारों, विशेषकर चिंता-डिप्रेशन का खतरा अधिक हो सकता है। सोशल मीडिया का अधिक इस्तेमाल बच्चों के दिमाग को भी सिकोड़ रहा है।

क्या कहते हैं मनोचिकित्सक?

इस बारे में अमर उजाला से बातचीत में वरिष्ठ मनोचिकित्सक डॉ सत्यकांत त्रिवेदी कहते हैं, बच्चों में बढ़ती सोशल मीडिया की लत शराब-धूम्रपान की तरह ही नुकसानदायक है। यह न सिर्फ मानसिक विकास को प्रभावित कर रही है साथ ही इसके कारण कम उम्र में डिप्रेशन के मरीज भी बढ़ रहे हैं। बच्चों में असामान्य व्यवहार परिवर्तन देखा जा रहा है, चिड़चिड़ापन-गुस्सा, उदासी, काम में मन न लगने जैसी शिकायतें बच्चों में बढ़ रही हैं।

इसके अलावा सोशल मीडिया/मोबाइल के अधिक इस्तेमाल के कारण नींद भी प्रभावित हो रही है। बच्चों को पर्याप्त नींद नहीं मिल पा रहा है जिसके कारण भी अवसाद और याददाश्त से संबंधित विकार बढ़ रहे हैं।

अभिभावक विशेष ध्यान दें

डॉ सत्यकांत कहते हैं, बच्चे सोशल मीडिया/मोबाइल पर कम समय बिताएं, इस बात को सुनिश्चित करना हर माता-पिता के लिए जरूरी है। हालांकि इसके लिए पहले आपको स्वयं अपनी आदतों में सुधार करने की आवश्यकता है। बच्चा किस प्रकार के कंटेट देखता है, इसका उसकी मानसिक स्थिति और व्यवहार पर सीधा असर होता है। सोशल मीडिया की बढ़ती लत के कारण अप्रत्यक्षतौर पर स्क्रीन टाइम भी बढ़ रहा है, ये मानसिक और शारीरिक दोनों प्रकार की सेहत के लिए चुनौतीपूर्ण समस्याएं हैं। मोबाइल लत न बने, इसका सभी उम्र के लोग विशेष ध्यान रखें।

Article Originally Published Amar Ujala 

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