प्यू रिसर्च सेंटर के अनुसार, अमेरिका में 69% वयस्क और 81% किशोर सोशल मीडिया का इस्तेमाल करते हैं। इन लोगों का ज्यादातर समय सोशल मीडिया पर ही बीतता है। जिसके कारण अस्पतालों में चिंता, उदासी या बीमार महसूस करने वाले लोगों की संख्या बढ़ रही है। साल 2015 के कॉमन सेंस सर्वे में पाया गया कि किशोर हर दिन 9 घंटे तक ऑनलाइन सर्च में अपना समय बिता रहे हैं।
साल 2017 के अध्ययन में कनाडाई शोधकर्ताओं ने पाया कि जो छात्र प्रतिदिन दो घंटे से अधिक समय तक सोशल मीडिया का उपयोग करते हैं, उनमें मानसिक स्वास्थ्य विकारों, विशेषकर चिंता-डिप्रेशन का खतरा अधिक हो सकता है। सोशल मीडिया का अधिक इस्तेमाल बच्चों के दिमाग को भी सिकोड़ रहा है।
इस बारे में अमर उजाला से बातचीत में वरिष्ठ मनोचिकित्सक डॉ सत्यकांत त्रिवेदी कहते हैं, बच्चों में बढ़ती सोशल मीडिया की लत शराब-धूम्रपान की तरह ही नुकसानदायक है। यह न सिर्फ मानसिक विकास को प्रभावित कर रही है साथ ही इसके कारण कम उम्र में डिप्रेशन के मरीज भी बढ़ रहे हैं। बच्चों में असामान्य व्यवहार परिवर्तन देखा जा रहा है, चिड़चिड़ापन-गुस्सा, उदासी, काम में मन न लगने जैसी शिकायतें बच्चों में बढ़ रही हैं।
इसके अलावा सोशल मीडिया/मोबाइल के अधिक इस्तेमाल के कारण नींद भी प्रभावित हो रही है। बच्चों को पर्याप्त नींद नहीं मिल पा रहा है जिसके कारण भी अवसाद और याददाश्त से संबंधित विकार बढ़ रहे हैं।
डॉ सत्यकांत कहते हैं, बच्चे सोशल मीडिया/मोबाइल पर कम समय बिताएं, इस बात को सुनिश्चित करना हर माता-पिता के लिए जरूरी है। हालांकि इसके लिए पहले आपको स्वयं अपनी आदतों में सुधार करने की आवश्यकता है। बच्चा किस प्रकार के कंटेट देखता है, इसका उसकी मानसिक स्थिति और व्यवहार पर सीधा असर होता है। सोशल मीडिया की बढ़ती लत के कारण अप्रत्यक्षतौर पर स्क्रीन टाइम भी बढ़ रहा है, ये मानसिक और शारीरिक दोनों प्रकार की सेहत के लिए चुनौतीपूर्ण समस्याएं हैं। मोबाइल लत न बने, इसका सभी उम्र के लोग विशेष ध्यान रखें।